Thursday 30 June 2016

समाज को समर्पित तीन मुक्तक

Hindi Poems


सौंपकर ज्योति प्रण की आओं मिलकर तम हटाए
साथ बैठे साथ गाए साथ मिलकर गम बटांए
समाज के विकास की बस इतनी सी है बात भर
एक कदम आप बढाओं एक कदम हम बढाए।
- कवि राम लखारा 'विपुल'


काल का विकराल पहिया हिम्मत से चलाना होगा
समाज के इस बाग को मेहनत से फलाना होगा
दिन दूनी और रात चैगुनी गति से गर बढ़ना है
मिलकर के हर घर में ज्ञान का दीप जलाना होगा।
- कवि राम लखारा 'विपुल'

मिल जुल कर हम खुशियों का नया जहान बना ले आओं
प्रेम स्नेह और दया भाव से नव खलिहान बना ले आओं
आओं मिलकर गले लगे और शिकवें सारे भूल जाए
भूल पुरानी बातें हम नया हिंदुस्तान बना ले आओं।
- कवि राम लखारा 'विपुल'

Sunday 19 June 2016

सबसे बड़ा गिफ़्ट (Hindi Love Story)

Ram Lakhara Vipul
रोहन थोड़े गर्म और कंजूस स्वभाव का व्यक्ति था। उसकी पत्नी लीना अपने पति के स्वभाव के विपरीत सौम्य और मृदु स्वभाव की थी। लेकिन दोनों प्यार से रहते थे।
शादी को तीन साल हो रहे थे। लीना अपने स्वभाव से पूरे परिवार को हंसी खुशी चलाती थी वरना केवल रोहन के स्वभाव के दम पर तो एक दिन भी गुजारना मुश्किल था।
'अरे लीना! क्या सोच रही हो?' रोहन ने लीना को सोच में डूबते देखकर कहा।
'हम्म्म्म्म! कुछ नहीं इट्स ओके। आई एम फाइन!' लीना अपना ध्यान तोड़ते हुए बोली।
'नहीं, नहीं। मुझे बताओं। वाट आर यू थिकिंग?' रोहन ने फिर जोर दिया।
'कुछ नहीं रोहन। मैं तो बस सामने उस पेड़ पर बैठे चिड़िया के जोड़े को देख रही थी। वह चिड़ा देखों चिड़िया के आस पास उड़ रहा है, प्यार से उसके सिर पर चोंच मार रहा है। दोनों में कितना प्यार है। है ना!' लीना ने कहा।
'अरे हां! दोनों कितने खुश लग रहे है। एक दूसरे के साथ।' रोहन ने लीना का साथ देते हुए कहा।
'एक औरत के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं होता रोहन कि उसे उसका पति प्यार करे, उसे खुश रखे। इन दोनों में मुझे अपना जीवन दिख रहा है, आपके साथ मैं कितनी खुश हूं। मैं भी उस चिड़िया के जैसे ही आपकों देख देख कर खुश होती रहती हूं। वी आर सच ए स्वीट कपल!' लीना लगभग चिड़िया के जैसे ही चहकते हुए बोली।
'अच्छा ऐसी बात है!' रोहन लीना की ऐसी बाते सुनकर उसके स्वभाव पर फिर से मुग्ध हो गया था। किस तरह लीना हर चीज में अच्छा ढूंढ लेती है।
'अरे मुझे आॅफिस जाने में देरी हो रही है। ओके! मैं चलता हूं।' रोहन ने मेज पर रखे हुए अपने टिफिन बाॅक्स को उठाते हुए कहा।
'ओके! ध्यान से जाना और टाइम पर घर आ जाना। आज तुम्हारी पसंद का खाना बनने वाला है।' लीना ने मुस्कुराहट के साथ रोहन को विदा करते हुए कहा।
रोहन अपनी कार से आॅफिस के लिए रवाना हो गया। आज सड़क पर जाम बहुत था। इसलिए रोहन को गाड़ी खड़ी करनी पड़ी। 
रोज रोज होने वाले जाम पर खुन्नस खाकर रोहन स्टीयरिंग पर थपकी मारते हुए दाएं बाएं देखने लगा। तभी उसकी नजर पास ही के पेड़ पर बैठे एक पक्षी के जोड़े पर पड़ गई। यह देखकर उसे सुबह वाली बात और अपनी पत्नी लीना की याद आ गई।
"लीना कितनी मासूम और प्यारे स्वभाव की है। वह हर बात में अच्छा देखती है। मुझ जैसे अजीब स्वभाव वाले व्यक्ति को भी लेकर चल रही है।" यह सोचते हुए आज सुबह ही लीना के कहे हुए शब्द अचानक से उसके कान में गूंज उठे - इन दोनों में मुझे अपना जीवन दिख रहा है, आपके साथ मैं कितनी खुश हूं। मैं भी उस चिड़िया के जैसे ही आपकों देख देख कर खुश होती रहती हूं।
यह बात याद आते ही रोहन का माथा ठनका। उसने पूरी घटना दिमाग में दोहराई तो उसने पाया कि आज सुबह तो वह चिड़ा उस चिड़िया पर प्यार जता रहा था लेकिन लीना ने कहा था कि मैं चिड़िया के जैसे ही आपको देखकर खुश होती हूं। 
रोहन को अपने स्वभाव पर पहली बार ग्लानि हुई। वह सोचने लगा कि लीना तो चिड़िया की भांति मुझे देखकर खुश होती है पर मैंने कभी चिड़े की तरह उससे प्यार नहीं जताया।
इतना सोचते ही उसने गाड़ी वापस घुमायी और बाजार से होते हुए घर पहुंचा।
डोरबेल की आवाज सुनकर लीना ने दरवाजा खोला।
'अरे रोहन! आॅफिस से इतनी जल्दी कैसे?'
'लीना। मैं आॅफिस गया ही नहीं रस्ते से ही वापस आ रहा हूं।' लीना के हाथों में एक पैक की हुई गिफ्ट देते हुए रोहन ने कहा।
'यह क्या है?' लीना ने खुश होते हुए कहा।
खुद ही खोल कर देख लो।
'वाॅव!!! डायमंड सेट! यह मेरे लिए है?'
'हां मेरी जान! तुम्हारे लिए।'
'लेकिन आज तो कोई सालगिरह नहीं है?'
'तुम्हें गिफ्ट देने के लिए मुझे किसी दिन की जरूरत थोड़े ही है। यह तुम्हारे लिए है और हां आज दिन भर मैं तुम्हारे साथ ही हूं।' रोहन ने लीना के गालों पर अपना हाथ रखते हुए कहा।

'अरे वाहहह! आज दिन भर तुम मेरे साथ हो! यह तो इस डायमंड सेट से भी बड़ा गिफ्ट है मेरे लिए।' 

रोहन खुश था लीना को खुश देखकर। लीना खुश थी वास्तविक खुशी पाकर।

समाप्त !
- राम लखारा 'विपुल'

Wednesday 8 June 2016

एक मुक्तक - Shayari

हाथों    मेहंदी,  होठो    लाली,  पैरो   पर    महावर   है
बिंदी,  काजल,  आंखे,  जुल्फे  सबके सब हमलावर है
कहने की यह बात नहीं कि समझाना भी मुश्किल कि
ऐसे  दिलकश हमलों  पर तो जान  प्रिये न्यौछावर है।
                                                                     -  विपुल


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