दोस्तों साल जाने को है। आज 31 दिसबंर हो गई है। 2015 हमारे पास से आहिस्ता आहिस्ता गुजर जाएगा, और हमें 2016 की गोद में सौंप जाएगा। 2016 की अंगुली पकड़कर हमें फिर से 365 पग भरने है। साल बीता, हाल बीता। जो कुछ पाया, उससे कहीं अधिक पाने की ख्वाहिश के साथ नए साल का स्वागत किया जाए। जो साथी पग पग पर साथ है, आगे भी साथ रहे और जो जीवन की आपाधापी में कच्ची, पक्की कीमतों पर साथ छोड़ गए, वें हर हाल में खुश रहे।जो साथी इस साल बिछड़ गए, भगवान उन्हें फिर किसी नए जन्म में हमसे मिलवा दे। नया साल, नई उम्मीदे लेकर आता है। व्यक्तिगत रूप से हम सब नए साल की शुरूआत में कुछ नया करने की ठानते है। चूुकि अब मानवता अपने चरम पर है, इसिलिए उसे अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हमें सामूहिक रूप से भी कुछ नया करने की ठाननी होगी। हम सब संकल्प करे कि फिर से कोई निर्भया अपनी बदहाली पर आंसू बहाते हुए दम नहीं तोड़ेगी, फिर से किसी औरत को तेजाब का दंश न झेलना पड़े, फिर से किसी फौजी की बेटी हमसे यह सवाल न पूछे कि फौजी का परिवार ही क्यों रोता है?, फिर से हमे न्याय न दिलवा पाने के कारण वंचितों से आंख न चुरानी पड़े, ऐसे समाज की दिशा में हम बढ सकते है जहां सुरक्षा हो तो साामूहिक, खुशी हो तो सामूहिक रूप से और किसी का गम हो तो भी हम सामूहिक रूप से साथ हो। 121 करोड़ का देश है, लेकिन हम स्वंय में ब्रह्मा है- अहं ब्रह्मास्मि। हम खुद को बदले, और देखिए धीरे धीरे पूरा समाज बदलता हुआ दिखेगा। व्यक्तिगत रूप से भी हम ऐसे प्रयास करे जिससे हमें खुशी मिले, हमारा कदम आगे बढें, हम स्वस्थ रहे और सुरक्षित रहे। मेरा विजन स्पष्ट है- 2016 में मैं अपनी दो पुस्तके प्रकाशित करवाने जा रहा हूं, साथ ही ज्यादा से ज्यादा अध्ययन पर मेरा जोर रहेगा। आप सब को नए साल की अशेष हार्दिक शुभकामनाएं। यह ब्लाॅग इस साल के अंत तक अपने 12000 पेज व्यूज तक पहुंच गया है, नए साल में और ज्यादा पाठक इससे जुड़े, ऐसी मुझे आशा है।
आंसू हंसी की धार में खो जाए तो क्या बात है ,
जिसे चाहा टूटके हमने वो आए तो क्या बात है ,
थाम कर हाथ में हाथ चले फिर से कुछ कदम ,
नए साल में ऐसा कुछ हो जाए तो क्या बात है। - राम लखारा 'विपुल'