Poetry of Ram Lakhara |
सागर से परित्यक्त होकर भी
जीवन का नव नाद फूंकता
कोलाहल के दुरूह दौर में
अनहद एक आवाज घोलता।
बिछड़न का हूं प्रथम स्वर मैं
प्रथम शब्द हूं बिरह गीत का
प्रथम प्रमाण हूं पल भर में ही
मिटने वाली क्षणिक प्रीत का।
अधिक नहीं है मेरा परिचय
अधिक नहीं है मेरा परिचय
कभी राजा रहा अब रंक हूं
प्रिय मिलन की राग छेड़ता
चिर विरह लिप्त मैं शंख हूं।
-राम लखारा 'विपुल'
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