आज 8 मार्च है अंतराष्ट्रीय महिला दिवस, साल का वह एकमात्र दिन जब सभी लोग महिलाओं के उत्थान की बात करते है। उसे पुरूष की सामंतवादी प्रभुत्वपूर्ण सोच से उबारने के तरीके सुझाते है और उसकी पैरोकारी करते है। हम सब जीवन के हर मोड़ पर हर पड़ाव पर कहीं न कही, किसी न किसी औरत से जुड़ाव में रहते है। चाहे वह मां हो, महबूबा हो, पत्नी हो या चाहे बेटी हो। हमारा उनसे जुड़ाव महज इसलिए नहीं होता कि प्रकृति ने हमें इसके लिए बाध्य किया है, बल्कि इसलिए भी कि हमें पग पग पर एक मजबूत हाथ की आवश्यकता होती है और कहना न होगा कि औरत की सहनशीलता, दृढता, स्नेह, सोच और सूझबूझ सबसे अलग है, विलक्षण है। औरत किसी पंगत का भोज नहीं है जिसे भाया जितना खाया और झूठा छोड़ दिया, वह पूजा की थाली का वह योग्य फूल है जो देवता को सबसे पहले समर्पित किया जाता है। हम सब इतना प्रण भी कर ले कि जो नारी हमसे जीवन में जुड़ी हुई है उसका सम्मान करेंगे और उसे समझने का प्रयत्न करंेगे तो हमारे हिस्से का महिला दिवस हम ईमानदारी से मना रहें होंगे।
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर डॉ उर्मिलेश का एक दोहा याद आता है-
तितली,हिरणी,मोरनी,कोयल,बत्तख,मीन।
सृष्टि पिता की बेटियां कितनी शोख हसीन।।
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर डॉ उर्मिलेश का एक दोहा याद आता है-
तितली,हिरणी,मोरनी,कोयल,बत्तख,मीन।
सृष्टि पिता की बेटियां कितनी शोख हसीन।।
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